24-06-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

अन्तर्मुखी बनने से फायदे

कोई भी नई इन्वेन्शन जब निकालते हैं, तो जितनी पावरफुल इन्वेन्शन होती है उतना ही अन्डरग्राउन्ड इन्वेन्शन करते हैं। आप लोगों की भी दिन प्रतिदिन यह इन्वेन्शन पावरफुल होगी। जैसे वह अन्डरग्राउन्ड इन्वेन्शन करते हैं वैसे ही आप भी जितना अन्डरग्राउन्ड अर्थात् अन्तर्मुखी रहेंगे उतना ही नई-नई इन्वेन्शन वा योजनायें निकाल सकेंगे। अन्डरग्राउन्ड रहने से एक तो वायुमण्डल से बचाव हो जायेगा; दूसरा - एकान्त प्राप्त होने के कारण मनन शक्ति भी बढ़ती है; तीसरा - कोई भी माया के विघ्नों से सेफ्टी का साधन बन जाता है। अपने को सदैव अन्डरग्राउन्ड अर्थात् अन्तर्मुखी बनाने की कोशिश करनी चाहिए। अन्डरग्राउन्ड भी सारी कारोबार चलती है। वैसे अन्तर्मुखी होकर भी कार्य कर सकते हैं। ऐसे नहीं कि कोई कार्य नहीं कर सकते हैं। कार्य भी सभी चल सकते हैं। लेकिन अन्तर्मुखी होकर के कार्य करने से एक तो विघ्नों से बचाव; दूसरा समय का बचाव; तीसरा - संकल्पों का बचाव वा बचत हो जायेगी। प्रैक्टिस तो है ना। कभी-कभी अनुभव भी करते हो। अन्तर्मुखी हो बोलते भी हो। लेकिन बाहरमुखता में आते भी अन्तर्मुख, हर्षितमुख, आकर्षणमूर्त भी रहेंगे - कर्म करते हुए यह प्रैक्टिस करनी है। जैसे स्थूल कारोबार का प्रोग्राम बनाते हो, वैसे अपनी बुद्धि की क्या-क्या कारोबार वा क्या कार्य बुद्धि द्वारा करना है। जो प्रोग्राम बनाने के अभ्यासी होते हैं उनका हर कार्य समय पर सफल होता है। इस रीति अपनी भी सूक्ष्म कारोबार है। बुद्धि एक सेकेण्ड में कहाँ से कहाँ जाकर आ भी सकती है। कार्य भी बहुत विस्तार के हैं। तो जब प्रोग्राम सेट करेंगे तब ही समय की बचत और सफलता अधिक हो सकेगी। यह प्रोग्राम बीच-बीच में बनाते रहो लेकिन सदाकाल के लिए। जैसे स्थूल कारोबार सेट करते-करते अभ्यासी हो गये हैं, वैसे ही यह भी अभ्यास करते-करते अभ्यासी हो जायेंगे। इसके लिए खास समय निकालने की भी आवश्यकता नहीं। कोई भी स्थूल कार्य जो भले अधिक बुद्धि वाला हो, उसको करते हुए भी यह अपना प्रोग्राम सेट कर सकते हो। प्रोग्राम सेट करने में कितना समय लगता है? एक-दो मिनट भी ज्यादा है। यह भी अभ्यास डालना है। अमृतवेले अपनी बुद्धि के कारोबार का प्रोग्राम भी पहले से ही सेट कर देना है। जैसे प्रोग्राम बनाया जाता है, फिर उसको चेक किया जाता है कि यह यह कार्य किया और कहां तक हुआ और कहां तक न हुआ। इसी रीति से यह भी प्रोग्राम बनाकर फिर बीच-बीच में चेक करो। जितने बड़े आदमी होते हैं वह बिना प्रोग्राम के नहीं जाते हैं। जैसे आया वैसे कर लिया, ऐसे नहीं चलते। उन्हों का एक-एक सेकेण्ड प्रोग्राम से बुक होता है। आप भी श्रेष्ठ आत्मायें हो, तो प्रोग्राम सेट होना चाहिए। कोई-कोई को प्रोग्राम बनाने का ढंग आता है, कोई को नहीं आता है। स्थूल कारोबार में भी ऐसे होता है। जितना-जिसको अपना प्रोग्राम सेट करना आता है उतना ही समझो अपनी स्थिति पर भी सेट होना आता है। नहीं तो बिना प्रोग्राम बनाने से जैसे बातें नीचे-ऊपर होती हैं वैसे स्थिति भी नीचे ऊपर होती है। सेट नहीं होती है। अच्छा।